लाकडाउन में मजदूरों की व्यथा
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चलौ सजन लौट चलौ अब अपने गाँव
चैन से रहिबे चलै बगियन की छांव
गेहुंहन के ख्यातन मा पाकि गये दनवां
काटि फसल घरै लयिबे चैन पाई मनुआं
आपन घर नीक हवै चाहे कच्चा हो या पक्का
खायें का तौ मिलबै करी ज्वार और मक्का
मक्का की रोटी और अम्बिया की चटनी
वही खा सबकी अब जिन्दगी है कटनी
हम ना अइबे अब कबहूँ तम्हरे ई शहर
सब जगह फैलिगा कोरोना का कहर
नौकरिव छोटि गई घर होइगा खाली
का खइहै लरिका बस बजइहैं अब ताली
गाँव मा तो छोटा बडा़ कामौ मिलि जइहै
कम से कम रूख सूख खानौ तौ मिलिहै
सास और ससुर की करिबऐ हम सेवा
उनके आशीर्वाद से मिली जाई मेवा
शहरन ते नीक हवै अपन छोट गाँव
कम ते कम मिलति तो है पेड़वन की छांव
अब तो है बेकारी और खांय की मारामारी
सब जगह फैल गई कोरोना की महामारी
कवि विद्या शंकर अवस्थी( पथिक)
2ए जानकीपुरम कल्यानपुर खुर्द कानपुर
मो् 8318583040,_9793250537
Seema Priyadarshini sahay
08-Mar-2022 05:27 PM
बहुत खूबसूरत
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Swati chourasia
07-Mar-2022 10:44 PM
Very nice
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